चल उठ बढ़ चल निशदिन अविरल
अड़चन कर दूर निरत आगे |
हो ध्येय यदि द्रढ़तम निश्चित
वही ध्यान सतत मन में जागे ||
हो साथ कोई या कोई नहीं
हो राह वही या राह नयी |
हो मित्र कोई हो या शत्रु
हो फूल कई या शूल कहीं ||
संकल्प शक्ति यदि जागे अरे
तब व्यक्ति किसी से नहीं डरे |
बढ चले यदि अपने पथ पर
परवाह व्यर्थ की नहीं करे ||
विघ्नों और बाधाओं का
परिहार वही कर सकता है |
चलकर ऐसे कंटक पथ पर
मंजिल को पा सकता है ||