Shabd jo kabhi sunai na diye

आँखों की नमी को ख़ुशी के आंसू बताना , कहना सब कुछ ठीक है फिर थोडा मुस्कुराना , भले दिल में हो दर्द पर हमदर्द बन जाना , देखा, कितना आसान है किसी भी गम को छुपाना ||

Thursday, March 31, 2011

Manh Sthiti

जब कोई कोशिश करता है ,
मुझे पकड़ने की 
मुझे जकड़ने की 
मुझे  रोकने की  |
तब मैं,
भाग जाना चाहता हूँ ,
छोड़कर ,
उसे |
जिससे 
कोई रोक न सके ,
और 
मैं उड़ सकूँ ,
खुले आसमान में ,
चाहे वह रोकता हो,
तो रह जाये,
रोकता ही,
अकेला |

  परन्तु 
इसके विपरीत 
वही,
जब कहता है ,
की
जाना है तो चले जाओ,
जाओ जरा क्षितिज तक जाकर आओ,
जाओ उड़ जाओ |
मै  
तुम्हे नहीं रोकता |
तब सोचता हूँ ,
कहाँ  जाऊ 
और  क्यों जाऊ
छोड़कर उसे ,
अतः
मैं नहीं जा पता ,
और 
वही रह जाता हूँ ,
उसी के पास ,
जिससे जाना था 
दूर |
                                 बहुत दूर...................

Pahchan Ki Rah

घट घट कर जीवन फिर मरघट ,
जा  पहुंचा  है  सरपट  सरपट  |
बस  याद  बची  कुछ और नहीं,
कुछ  देर  रही  फिर  याद नहीं ||

थे  लोग  कई  जो  बीत  चुके ,
ऐसे  किस  किस  को याद रखें|
अस्तित्व   बनाने    आये   थे,
अस्तित्व   बनाते   मिट  बैठे ||

अंतिम क्षण तक संघर्ष किया ,
अस्तित्व  बनाने  को  अपना |
पर आश स्वांस के साथ गयी,
और टूट  गया  सारा  सपना ||

सुख जीवन   के  सारे  त्यागे,
पहचान    बनाकर   जाऊंगा |
जीवन भर कठिन परिश्रम कर,
अपनी    पहचान    बनाऊंगा ||

फिर  बीत  गया सारा जीवन ,
दुनिया में पहचान बन गयी |
पहचान बने कुछ दिन गुजरे ,
पर मृत्यु उसके गले पड़ गयी ||

खुद को पहचान  नहीं  पाया ,
खुद जो पहचान बनायीं थी |
जब पाया नव नर तन उसने,
अपनी   पहचान  गवाई थी ||

में देख रहा फिर सोच रहा,
क्यों प्राणी इसमें घूम रहा |
क्यों नहीं  खोजता  वे  राहें ,
जो इसे उन्नति पर ले जाये||

पर    में   भी  हूँ   ऐसे रथ पर,
जो नहीं अभी उन्नति पथ पर|
सो सोच रहा  किस ओर चलूँ ,
जिस पर चलकर सन्मार्ग मिलूं||

पर  समझ नहीं  मुझको  आता ,
कैसे  मंजिल मंजिल को पा जाता|
सो  छोड़  रहा  इसको  तुम  पर,
यदि राह मिले  सब  साथ  चलें ||