नदी
प्रारंभ करती है
अपनी
जीवन यात्रा |
दोनों ओर,
जीने की आशा ,
और
परोपकार का उद्देश्य
रुपी
तटों को साथ लेकर |
अनवरत
चलती रहती है,
वगैर किसी स्वार्थ के ,
सभी की प्यास बुझाते हुए |
बाधाएं आती है ,
रास्ता रोकने के लिए ,
परन्तु
असफल रहे
किये गए सभी प्रयास
उनके ,
और नदी पाती है
आशातीत सफलता |
सभी रुकावटों को
तोड़कर
एकाकी
वगैर किसी सहायता के
और
जब अंत आया तो
इसी आशा से
की
शायद
कम कर सके
खारापन ,
सागर का ,
अर्पण कर
मीठा जल अपना ,
खो देती है अस्तित्व
विलीन होकर
सागर की गहराइयों में |
यही तो है ,
कहानी
प्रत्येक
महापुरुष की
उपकार
स्व - का नहीं
पर का उपकार
परोपकार
परोपकार
परोपकार........