Shabd jo kabhi sunai na diye

आँखों की नमी को ख़ुशी के आंसू बताना , कहना सब कुछ ठीक है फिर थोडा मुस्कुराना , भले दिल में हो दर्द पर हमदर्द बन जाना , देखा, कितना आसान है किसी भी गम को छुपाना ||

Saturday, March 5, 2011

माँ

माँ सुन एक बात सुनाता हूँ ,
कुछ बीती याद दिलाता हूँ |
हाँ भूल नहीं सकती तू भी ,
 मैं बात वही दोहराता हूँ || 

माँ जब तू लोरी गाती थी ,
 जब मुझको रोज सुलाती थी |
होती थी थककर चूर स्वयं ,
 बाँहों में मगर झुलाती थी ||

बिस्तर पर मुझे सुलाती थी ,
 खुद बैठे ही सो जाती थी |
रखती हरपल ध्यान मेरा ,
फिर सपनों में खो जाती थी ||

सूरज तो सोया रहता था ,
 पर तू पहले उठ जाती थी |
फिर झाड़ू बर्तन चौका सब ,
 तब करने में जुट जाती थी ||

सुनती थी जब भी किलकारी , 
खुश होकर के मुस्काती थी |
झट काम छोड़कर आती थी,
फिर मुझको गले लगाती थी ||

फिर हाथ पकड़ चल कदम कदम,
तू चलना मुझे सिखाती थी |
यदि लगती थी कभी चोट मुझे ,
 तो आंसू  स्वयं बहाती थी ||

सबसे    अच्छा    मेरा    बेटा ,
 ये बात सभी को सुनाती थी |
 नजर कहीं मुझे लग न जाये ,
तू काला तिलक लगाती थी ||

कहना मुझको था तब तुमसे ,
 पर नहीं बोलना आता था |
कहता हूँ बात वही तुमसे ,
 जो सोच सोच रह जाता था ||

पर  समझ  नहीं  मैं  पाता हूँ ,
 वे शब्द ढूंढ़ न पाता हूँ |
जो करे वयां मन की बातें ,
जो कहने में सकुचाता हूँ ||

पाया था मैंने सुख , तुमने,
 जब गोद में मुझे उठाया था |
जब देख मुझे मुस्काया था,
 जब झूला मुझे झुलाया था ||

पाई थी मैंने खुशियाँ जब ,
तुने , नाम से मुझे बुलाया था |
जब बालों को सहलाया था ,
 जब रोने पर बहलाया था ||

थी मुझको प्यारी गोद तेरी ,
 जितनी राजा को सिंहासन |
बिन जिसके नींद न आती थी,
 मानों फूलों का शय्यासन ||

होता था निर्भय मैं तब तब ,
 जब हाथ तेरा सर पर होता |
चल पड़ता नन्हे क़दमों से,
 जब हाथों में हाथ तेरा होता ||

पर होता था दुःख मुझको भी ,
 जब आँख तेरी भर आती थी |
जब छोड़ तू मुझको जाती थी,
 जब मुझको नहीं मनाती थी ||

रोना तो बस एक बहाना था ,
 नजदीक तुम्हारे आना था |
माँ पास में तुम्हे बुलाना था , 
 बस तुझको गले लगाना था ||

अब करता हूँ याद तुम्हे हर पल ,
वो गया जमाना बीता कल |
जो नहीं लौटकर आतें  हैं  , 
वो सुन्दर और सुहाने पल  ||

ना मैं भूल सका ना भूलूंगा ,
 है ताजा याद हर एक पल की |
पर लगता नहीं बरष बीतें ,
 हर घटना हो जैसे कल की ||

माँ यदि मैंने तुझे सताया हो,
 नहीं अपना फ़र्ज निभाया हो |
करना अपराध क्षमा मेरे ,
यदि मैंने तुझे रुलाया हो ||

माँ मैं दिल की बात बताता हूँ , 
तुझको विस्वास दिलाता हूँ |
बन जाऊंगा प्यारा बेटा ,
 मैं आज कसम ये खाता हूँ ||

जब जब तू मुझे बुलाएगी ,
 जब मेरी जरुरत पायेगी  |
अगले ही पल माँ तू मुझको , 
चरणों में अपने पायेगी ||

Avirodh

लोग कहते हैं कि
 सूर्य के प्रकाश में 
गवां बैठता है ,
अपना अस्तित्व,
एक दीपक ...
पर नहीं ...

एक गुणवान व्यक्ति
भुला देता है
अपने आपको ,
अन्य गुणी व्यक्ति को देखकर 
 अविरोध ......
क्योंकि  वे सज्जन हैं,
और नहीं है उनमे परस्पर
विरोध ......
अतः 
दीपक
अस्तित्व नहीं खोता है
वरन
अधिक गुणी को देख
गदगद
हो जाता है
और
उसी के प्यार में 
सदा के लिए 
खो जाता है