मन के कागज पर एक चित्र
जो अद्भुत है पर नहीं विचित्र |
चिर परिचित है हम सब उससे
वह गंगा से ज्यादा पवित्र ||
जो नहीं मिटाया जा सकता
जो नहीं भुलाया जा सकता |
करले कोई कोशिश कितनी
पर नहीं हटाया जा सकता ||
नहीं ऐसा कोई चित्रकार
जो यह चित्र बना पाए |
वह सहज स्वतः सबके भीतर
बन जाता है मन कागज पर ||
ममता का सुन्दर मधुर रंग
खुशियों के जल में जा घुलता |
फिर मिलकर प्रेम की कूची से
मन के कागज को रंग देता ||
तब बनता है एक अक्श
जो होता है सबको प्यारा |
माँ का वह चेहरा होता
इस दुनिया में सबसे न्यारा ||
सारे रंग तो फीके पड़ते
पर यह रंग अनोखा है |
जैसे जैसे समय बीतता
गहरा होता जाता है ||
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