जो मै कहना चाहता हूँ वह कह नहीं पता; मन की बात अपने मन में ही दबाये रह जाता हूँ कभी कभी सोचता हूँ की ये शब्द मेरे मुह से निकलेंगे तो मेरे ही हुए सो कुछ भी बोल सकता हूँ | पर अगले ही पल फिर ख़याल आता है कही मुह से निकलकर ये तीर न बन जाये | इसीलिए नया रास्ता खोजा है मन की बात को कहने का , उन शब्दों को बाहर निकलने का जो मेरे होते हुए भी मेरे न हो सके |
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