जिंदगी का एक दिन और ढल गया
वर्तमान से वही अतीत में बदल गया |
लगता है जैसे कोई पूछ रहा हो
कितना समय और व्यर्थ निकल गया??
समय निकला है और निकल जायेगा
पर सवाल का जबाब नहीं आयेगा |
क्योंकि गंवाया है व्यर्थ में कितना समय??
गिनेगे तो समय और व्यर्थ निकल जायेगा||
बचने को समय खुद बदलना पड़ेगा
उचाईयों को पाना है तो जलना पड़ेगा |
क्योंकि समय तो गतिमान है रुकता नहीं
यदि पाना है मंजिल तो चलना पड़ेगा ||
पर चलते है कई लोग मंजिल नहीं पाते
होकर के पथ भ्रष्ट भटकते रह जाते |
क्योंकि राह दिखने वाले तो बहुत है
पर छोड़कर मझधार वे आगे नहीं आते||
चलना है अकेले यदि पाना है मंजिल
मिलेंगी रास्ते भर कठिनाइयों की महफ़िल|
जब तक है दम आशा ना छोड़ना
पा जाओगे मंजिल होगे यदि काबिल||
No comments:
Post a Comment