आकुलित हुई मानवता थी
थी बढती हिंसा की धारा |
तम घोर घनेरा था छाया
था चिंतित विश्व विकट सारा ||
तब माँ त्रिशला उदयाचल बन
तमहर दिनकर लेकर आयीं |
फिर देख वीर की मुख मुद्रा
सारे जग में खुशियाँ छायी ||
हर्षित थी नगरी कुण्डलपुर
देवों में खुशियाँ थी छायीं |
था गर्व पिता की आँखों में
माँ की अँखियाँ भी भर आयीं ||
पाने को एक छवि प्रभु की
वह इन्द्र जमीं पर आया था |
कर नेत्र हजारों से दर्शन ||
मन तृप्त नहीं कर पाया था ||
अवसर था जन्म दिवस प्रभु का
खुशियाँ लेकर के आया था |
सबका कल्याण हुआ इससे
अतः कल्याणक कहलाया था ||
वह शुभ दिन आज पुनः आया
जन जन का मन है हर्षाया |
करने को वंदन अभिनन्दन
यह सेवक चरणों में है आया ||
अब आश यही कल्याणक से
मैं बनू आपका अनुगामी |
चलकर पद चिन्हों पर तेरे
बनना है स्वयं मोक्षगामी ||
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