यह इन्सान नहीं ,
पिटारा है
गलतफहमियों का |
क्योंकि
सोचता है,
हर छुपी हुई चीज
होती है खजाना |
अतः
कुरेदता है,
जीवन के हर पल को
बड़ी बेदर्दी से
होकर सच्चाई से अनजाना |
बढता है आगे रौंदकर
बचपन की मासूमियत को ,
ढूँढने
अनजान सी खुशियों का खजाना |
सोचकर
की पायेगा
अगले पल
देता है बलि ,
हर एक पल की ,
कीमत न समझकर
और
बीतता है
जीवन
साल दर साल |
सोचता है
पढ़कर ,
बढ़कर ,
कमाईकर ,
जीवनसाथी में ,
संतति में ,
संपत्ति में ,
पा जायेगा
वह
अनजान सी ख़ुशी का खजाना |
जिसकी है तलाश |
पर
ख़ुशी की रेत का घरोंदा
बहा ले गई
अगली चाहत की
हर एक लहर |
और
अंततः
लौटता है खाली हाथ
बेरंग |
गवांकर
जीवन की हर साँस
और हर पल की ख़ुशी का
खजाना ...........
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