जब कोई कोशिश करता है ,
मुझे पकड़ने की
मुझे जकड़ने की
मुझे रोकने की |
तब मैं,
भाग जाना चाहता हूँ ,
छोड़कर ,
उसे |
जिससे
कोई रोक न सके ,
और
मैं उड़ सकूँ ,
खुले आसमान में ,
चाहे वह रोकता हो,
तो रह जाये,
रोकता ही,
अकेला |
परन्तु
इसके विपरीत
वही,
जब कहता है ,
की
जाना है तो चले जाओ,
जाओ जरा क्षितिज तक जाकर आओ,
जाओ उड़ जाओ |
मै
तुम्हे नहीं रोकता |
तब सोचता हूँ ,
कहाँ जाऊ
और क्यों जाऊ
छोड़कर उसे ,
अतः
मैं नहीं जा पता ,
और
वही रह जाता हूँ ,
उसी के पास ,
जिससे जाना था
दूर |
बहुत दूर...................
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