हास्य काव्य जब लिखने बैठा,
कलम हमारी रो बैठी |
रक्तयुक्त आँखें दिखलकर,
और अकड़ मुझसे ऐठी ||
कहती तुम सब खूब हँसे हो,
व्यर्थ राग तुक तानों पर |
देख दूसरों की कमजोरी,
और द्वयर्थी गानों पर ||
कभी स्वयं की नजरें फेरो,
हुई दुखद जो घटनाएँ |
आज बदलती दशा देश की,
जो हम सबको बतलाये ||
गबन करोड़ों करने बाले,
नेता संसद में बसते |
देश की इस कमजोरी पर,
क्या हम सब मिलकर के हँसते ||
खूनी पंजा गाढ़ रहा जो,
भारत माँ की छाती पर |
भारतवासी कोई हंसा क्या,
आतंक से हुई बरबादी पर ||
ओर पतन की बढ़ता भारत,
इसमे भी क्या रस लोगे |
हमला मुनियों पर होता है,
इस पर भी क्या हंस लोगे ||
दिल्ली की घटना ही देखो,
कहाँ सुरक्षित महिलाएं |
इस लज्जित घटना पर कैसे,
हास्य काव्य लिख मुस्काए ||
दगाबाज दुश्मन सीमा पर,
गला काट कर ले जाए |
हास्य कहाँ उत्पन्न करू मैं,
हुई दुखद कुछ घटनाएँ ||
मृत सैनिक के भीतर जीवित,
नक्सल बम रखकर भेजे |
अमानवीयता विश्मयकारी,
हास्य कहाँ इसमे लेखें ||
कई विलखते चेहरे देखे,
इलाहाबाद स्टेशन पर |
घटना दुख पहुचाने वाली,
हास्य लिखूँ कैसे उस पर ||
लथपथ लाशें बिछी हुई थी,
आक्रंदन था बाजार में |
हँसे नहीं हम नम आँखें थीं,
विष्फोट हैदराबाद में ||
हँस सकते तो आज हँसो तुम,
बढ़ते भ्रस्टाचारों पर |
हँस सकते तो आज हँसो तुम,
देश के इन गददारों पर ||
हँस सकते तो आज हँसो तुम,
धर्म के उन बाज़ारों पर,
हँस सकते तो आज हँसो तुम,
अपने काले कामों पर,
हँस सकते तो आज हँसो तुम,
अपने बुरे विचारों पर |
हँस सकते तो आज हँसो तुम,
अपनी कुटिल निगाहों पर ||
हँस सकते तो आज हँसो तुम,
बुझी हुई चिंगारी पर |
हँस सकते तो आज हँसो तुम,
अपनी इस लाचारी पर ||
देश आज शमशान बना है,
क्योंकि हम सब बहुत डरे हैं |
अपनी इस कमजोरी से,
हम सब जीवित नहीं मरें हैं ||
बहुत सरल दूजों पर हँसना,
एक बार खुद पर हँस लो |
दूर बुराई करने अपनी प्रणकर,
आज कमर कस लो ||
अमित जैन
16/03/2013
1 comment:
ye besharm jamana hai
ye dujon par hansna janta hai
ye kayaron ka mehkhana hai
ye ansuon ka jam chhalkana janta hai....
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